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को नमन करने से इन्कार करना क्या उचित होगा ?' आप दोनों लोक में अग्रगण्य हैं। आपके प्रेमपूर्वक व्यवहार में ही जगत का सद्भाग्य है और हम लोगों को भी इसी में प्रसन्नता होगी।" - यह प्रार्थना करते | हुए दक्षिणांक ने बाहुबली के चरणों में पुनः साष्टांग नमस्कार किया।
बाहुबली बोले - “मैं जानता हूँ कि तुम बोलने में चतुर हो, परन्तु मुझे बातों में मत बहलाओ।" दक्षिण - “राजन्! क्या कोई बड़े भाई से मिलने के लिए इसप्रकार इन्कार कर सकता है ?"
बाहुबली ने कहा - "वह अभी हमारे लिए बड़े भाई नहीं हैं। अभी वे दिग्विजय के लिए निकले हैं। वे मुझे आत्मसमर्पण करने के लिए बुलाना चाहते हैं, जो संभव नहीं है। सेना के साथ नगर के बाहर पड़ाव डालकर एक दूत के द्वारा बुलानेवाला भाई नहीं हो सकता है।" ___ दक्षिणांक ने कहा - "स्वामिन्! आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं ? सभी राजाओं ने प्रार्थना कर सम्राट को यहाँ ठहराया है। चक्रवर्ती स्वयं ठहरने के लिए तैयार नहीं थे। सचमुच में हमने उन्हें ठहराया है। आप जैसे सर्वश्रेष्ठ कामदेव के दर्शन सभी परिवारजनों को कराने की भावना हमने प्रगट की है; परंतु आपको हम पर दया नहीं आती। क्या करें ?"
दक्षिणांक ने पूर्ण विनय एवं चतुराई से बाहुबली को भरत से मिलने के लिए भरसक प्रयत्न किए; किन्तु फिर भी जब वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुआ तो अन्त में दक्षिणांक दुःख के साथ वहाँ से वापस भरतेश के पास चला गया। वह मन में सोच रहा था। "कर्मगति विचित्र है, मोक्षगामी पुरुष भी स्वाभिमान के नाम पर मान कषाय के चक्कर में पड़ गये हैं। वस्तुतः जो होना है, उसे कौन टाल सकता है। होनहार के अनुसार ही भाव होने लगते हैं। वैसा ही प्रयत्न और तदनुकूल निमित्त भी मिल ही जाते हैं।” अस्तु!
दक्षिणांक अपनी नौकरी की पराधीनता के बारे में सोचता है - "ऐसी परसेवा के लिए धिक्कार है, यदि किसी काम में सफलता मिली तो स्वामी के पुण्य से सफलता मिली है और यदि कोई काम न बन ||१७
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