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सका तो उस काम को सफल करने में कोई कितना भी सक्रिय रहा हो, श्रम किया हो; फिर भी उसको | दोष ही दिया जाता है । "
पुरजन परस्पर में बातें कर रहे थे "भरत बड़ा भाई है। पूरे भरत खंड का वह एकमात्र अधिपति राजा | है । उनके साथ बाहुबली का यह व्यवहार क्या बाहुबली को शोभा देता है ? अस्तु.......
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वापिस आये दूत से बाहुबली के द्वारा युद्ध में सामना करने के समाचार सुनकर भरतजी सोचते हैं - "वह अपने पुष्प बाणों से विषयाभिलाषी बहिरात्माओं को कष्ट पहुँचा सकता है, परन्तु मुझ सरीखे सहजात्म | रसिक का वह कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। क्या वह यह भी नहीं समझता कि कामदेव और चक्रवर्ती की | शारीरिक शक्ति में क्या अन्तर होता है ? यदि मुझे क्रोध आ गया तो मैं उसे गेंद की भांति उसे उठाकर समुद्र में फेंक दूंगा; परन्तु मैं ऐसा करूँगा नहीं। हाँ, यदि नहीं माना तो पोटली बांधकर पालकी में रखवा कर छोटी माँ के पास भेज दूँगा । "
भरतेश ने आगे सोचा - “आने दो! उसे एक बार वस्तुस्थिति का ज्ञान करायेंगे।” सहानुभूति दिखाते हुए दूत का यथायोग्य सत्कार किया और कहा - " तुम्हें खिन्न नहीं होना चाहिए। तुमने तो चतुराई के साथ बहुत अच्छा काम किया। पर, होगा तो वही जो होना है, उसे तो इन्द्र और जिनेन्द्र भी नहीं टाल सकते। भाई का सम्मान रखते हुए तुमने अपना कर्तव्य पूरा किया। इसके लिए तुम्हें जितना भी धन्यवाद दें, कम ही हैं। अस्तु, वह मेरा भाई है, कोई शत्रु नहीं; बस, उसने स्वाभिमान के कारण अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है; परन्तु कोई चिन्ता नहीं, समय पर सब ठीक हो जायेगा । आप देखते जावें मैं किसी उपाय से उसके दिल को जीत ही लूँगा।"
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आदिपुराण के कथानक के अनुसार दोनों ही सेनाओं में जो शूरवीर थे, वे परस्पर युद्ध करने की इच्छा न्द | से अपनी-अपनी सेना की व्यूह रचना करने लगे। इतने में ही दोनों ओर के मुख्य मंत्रियों ने परस्पर विचार | किया कि - “यह दोनों ओर से होनेवाला युद्ध शान्ति का सूचक नहीं है; क्योंकि ये दोनों भाई तो चरम १४
सर्ग