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१७७| पर पानी उछालते हुए जब भरतेश्वर जलयुद्ध में भी विजय प्राप्त नहीं कर पाये तो बाहुबली की सेना ने पुनः
विजयश्री की घोषणा कर दी। । इसके बाद सिंह के समान पराक्रम को धारण करनेवाले धीर-वीर वे दोनों बाहुयुद्ध की प्रतिज्ञा कर रंगभूमि में उतरे । दोनों भाइयों ने ताल ठोककर, दाव-पेंच लगाकर, पैंतरा बदलते हुए मल्लयुद्ध किया। इस | युद्ध में भी भरतेश ही हारे।
उसीसमय बाहुबली की सेना ने विजय की हर्षध्वनि से आकाश को गुंजा दिया। इसके विपरीत भरत की सेना एवं पक्ष के लोगों ने लज्जा से सिर झुका लिया। दोनों पक्षों की जनता के समक्ष चक्रवर्ती भरत की पराजय ने सबको आश्चर्य चकित कर दिया; क्योंकि एक ओर चक्ररत्न के साथ चक्रवर्ती की शक्ति और सेना तथा दूसरी ओर सामान्य राजा बाहुबली। परन्तु यह कोई नई बात नहीं थी।" आचार्य जिनसेन का कहना है कि "कलिकाल के प्रभाव से ऐसा होना तो निश्चित ही था।" __ आचार्य जिनसेन के कथन के अनुसार ही आदिपुराण में आगे लिखा है कि यद्यपि भरतजी यह सब जानते थे, तथापि क्षणिक क्रोधावेश में आकर क्रोध से जलने लगे, उनका मुख मण्डल लाल हो गया, ओंठ थर-थर कांपने लगे। क्रोध से अंधे हुए भरत ने बाहुबली को पराजित करने के लिए समस्त शत्रुओं के समूह के उखाड़ फेंकने वाले चक्ररत्न का स्मरण किया। स्मरण करते ही वह चक्ररत्न भरत के समीप आया, भरत ने बाहुबली पर चक्र चलाया, परंतु उनके अवध्य होने से वह उनकी प्रदक्षिणा देकर तेजहीन होकर भरत के पास जा ठहरा। ___ तात्पर्य यह है कि देवोपनीत शस्त्र कुटुम्ब के लोगों पर सफल नहीं होते, बाहुबली भरतेश के पैत्रिक भाई थे। दोनों की मातायें पृथक्-पृथक् होने पर भी पिता एक ऋषभदेव ही थे, इसकारण भरत का चक्ररत्न बाहुबली पर नहीं चला और बाहुबली की परिक्रमा देकर भरत के हाथ में आ गया। __उस समय बड़े-बड़े राजाओं ने भरत के क्रोधावेश और दुस्साहस को धिक्कारा । इससे भरतजी और अधिक संतापित हुए। अनेक राजाओं ने बाहुबली के समीप आकर उनकी विजय की प्रशंसा की। बाहुबली ॥ १४
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