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॥ आकार की अपेक्षा पुद्गल के ६ भेद हैं। १. सूक्ष्म-सूक्ष्म, २. सूक्ष्म, ३. सूक्ष्म-स्थूल, ४. स्थूल-सूक्ष्म, || ५. स्थूल, ६. स्थूल-स्थूल। ॥ १. स्कन्ध से पृथक् रहनेवाला परमाणु 'सूक्ष्म-सूक्ष्म' है। २. कर्मों के स्कन्ध सूक्ष्म' हैं। ३. शब्द, स्पर्श,
रस, गन्ध 'सूक्ष्म-स्थूल' हैं। ४. छाया, चांदनी और आतप आदि स्थूल-स्थूल' हैं, ५. पानी आदि तरल || पदार्थ जो कि पृथक् करने पर भी मिल जाते हैं, वे 'स्थूल' हैं तथा ६. पृथ्वी आदि स्कन्ध जो तोड़ने पर | मिले नहीं, वे 'स्थूल-स्थूल' हैं।" इसप्रकार ऊपर कहे हुए जीवादि पदार्थों के यथार्थ स्वरूप का जो भव्य विपरीतता रहित श्रद्धान करता है वह परब्रह्म अवस्था को प्राप्त होता है।
भगवान ऋषभदेव से तत्त्वों का स्वरूप सुनकर भक्ति से भरे हुए भरत परम आनन्द को प्राप्त हुए । भरतजी | ने भगवान ऋषभदेव से सम्यग्दर्शन की शुद्धि और अणुव्रतों की परमशुद्धि को प्राप्त किया। भरतजी ने भगवान ऋषभदेव की आराधना कर व्रत और शील धारण कर लिए। ___ उसी समय पुरिमताल (आधुनिक प्रयाग) के स्वामी और राजा भरत के छोटा भाई वृषभसेन ने भी भगवान ऋषभदेव के पास जाकर दीक्षा ले ली। वृषभसेन पुण्यवान, विद्वान, धीर, वीर, स्वाभिमानी, बुद्धिमान और जितेन्द्रिय थे। उन्हें समवसरण में मानस्तम्भ के दर्शन करने मात्र से वैराग्य हो गया था। वे भगवान ऋषभदेव के प्रथम गणधर बने । ऋषभदेव के अन्य पुत्र भी गणधर बने । आहारदान देनेवाले राजा सोमप्रभ एवं राजा श्रेयांस तथा अन्य राजा भी दीक्षा धारण करके भगवान ऋषभदेव के गणधर हुए।
भरत के भाई अनन्तवीर्य ने भी दीक्षा ले ली। यहाँ ज्ञातव्य है कि इस युग में अनंतवीर्य ने सबसे पहले मोक्ष प्राप्त किया था। जो ऋषभदेव के साथ दीक्षित होकर भ्रष्ट हो गये थे। वे चार हजार तपस्वी भगवान ऋषभदेव से तत्त्वों का यथार्थ स्वरूप समझकर फिर से दीक्षित हो तपस्या करने लगे थे। मात्र मारीचि नहीं सुलटा।
गृहस्थ जीवन में राजा ऋषभदेव की पुत्री भरत की बहिन ब्राह्मी दीक्षा लेकर आर्यिका संघ की प्रमुख || आर्यिका बनी थी। ऋषभदेव की द्वितीय पुत्री बाहुबली की सहोदरी सुन्दरी ने भी प्रभु की साक्षी पूर्वक || ११
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