________________
BREFFE
भरतेश द्वारा दिग्विजय को प्रस्थान कृतयुग के आरंभ में आदि तीर्थंकर के प्रथम पुत्र महाराजा भरत बहुत आनंद के साथ राज्य का शासन | कर रहे थे। उनके राज्य में प्रजा को किसी भी प्रकार का दुःख नहीं था, चिंता नहीं थी, प्रजा अत्यंत सुखी थी। प्रजा रात-दिन महाराजा भरत की शुभकामना करती थी कि हमारे दयालु राजा भरत चिरकालतक सुखपूर्वक राज्य करें। भरतेश के मन में भी कोई प्रमाद नहीं, राज्यभार की उन्हें जरा भी चिन्ता नहीं। किसी बात की अभिलाषा नहीं। प्रजाहित में आलस्य नहीं। जिसप्रकार देवेन्द्र स्वर्ग का शासन करते हैं, भरतेश भी उसीप्रकार प्रेमपूर्वक पृथ्वी का पालन कर रहे थे। ___ एक दिन मंत्री बुद्धिसागर ने कहा - "स्वामिन्! शस्त्रालय में बालसूर्य के समान चक्ररत्न का उदय हुआ है। अत: अब आप दिग्विजय के लिए प्रस्थान करें।
राजन् ! आप दुष्टों को मर्दन करने में तो समर्थ हैं ही। त्यागी, तपस्वी एवं सदाचारी पुरुषों का संरक्षण तथा धर्मात्माओं के धर्म की रक्षा भी आपके द्वारा ही होती है। ऐसी अवस्था में इस भूमि की प्रदक्षिणा देकर सर्व राजाओं को अपने अधीन कर छहों खण्डों पर विजय प्राप्त करें।
जहाँ जो उत्तम पदार्थ हैं, वे सब आपको भेंट करने के लिए लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन सबकी इच्छा की पूर्ति करते हुए आप देश-देश की शोभा देखें। दूर-दूर देश के जो राजा हैं उनके घर में उत्पन्न कन्या रत्नों से ब्याह कर उनके जीवन को धन्य करें। अब देरी क्यों करते हैं ? राजन्! छह खण्ड की प्रजा आपके दर्शन के लिए तरस रही है। उनको दर्शन देकर उन्हें कृतार्थ करें।"
AFFFF
सर्ग