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काल दो प्रकार का है - व्यवहार काल और निश्चय काल । घड़ी-घंटा आदि को व्यवहार काल कहते हैं और लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश पर रत्नों की राशि के समान बिना स्पर्श किये रहनेवाले जो असंख्यात कालाणु हैं, उन्हें निश्चय काल कहते हैं । व्यवहार काल से ही निश्चय काल का निर्णय एवं निश्चय होता है । यदि मुख्य पदार्थ अर्थात् निश्चय काल ही न होता तो घड़ी, घंटा का व्यवहार कहाँ से / कैसे होता ? यहाँ स्थूल व्यवहार काल के द्वारा सूक्ष्म निश्चय काल की सिद्धि की है। पर्याय के द्वारा ही तो पर्यायी (द्रव्य) का ज्ञान होता है।
परस्पर में प्रदेशों के नहीं मिलने से यह कालद्रव्य अकाय, अप्रदेशी या एक प्रदेशी कहलाता है।
तात्पर्य यह है कि जिसमें बहुप्रदेश हों उसे अस्तिकाय कहते हैं । काल को छोड़कर सभी द्रव्य बहुप्रदेशी होने से अस्तिकाय हैं और कालद्रव्य एक प्रदेशी होने से अस्तिकाय नहीं कहा जाता है। काल को छोड़कर | शेष द्रव्यों के प्रदेश एक-दूसरे से मिले रहते हैं । इसीकारण वे अस्तिकाय हैं। इनमें मात्र पुद्गल मूर्तिक है, | शेष पाँच द्रव्य अमूर्तिक हैं। एक जीव चेतन हैं, शेष पाँच द्रव्य अचेतन हैं ।
पाँच इन्द्रियों में से किसी भी इन्द्रिय के द्वारा जिसका स्पष्ट ज्ञान हो उसे मूर्तिक कहते हैं । जिसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण पाया जाय, वे पुद्गल हैं। पूरण-गलन स्वभाव होने से पुद्गल नाम सार्थक है। पूरण अर्थात् | मिलना और गलन अर्थात् बिछुड़ना । पुद्गल द्रव्य में मिलना-बिछुड़ना - ये दोनों अवस्थायें होती रहत हैं। इसलिए उसका पुद्गल नाम सार्थक है।
पुद्गल के दो भेद हैं- स्कन्ध, परमाणु । अणुओं के समुदाय को स्कन्ध कहते हैं । ये स्कन्ध दो परमाणु वाले 'द्वयणुक' स्कन्ध से लेकर अनन्तानन्त परमाणु वाले 'महास्कन्ध' तक होते हैं। छाया, आतप, अन्धकार, चाँदनी, मेघ आदि सब पुद्गलस्कन्ध के भेद-प्रभेद हैं। परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं । वे इन्द्रियों से नहीं जाने जाते । घट-पट आदि परमाणुओं के कार्य हैं । परमाणु गोल और नित्य होते हैं। पर्यायों की अपेक्षा अनित्य भी होते हैं।
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