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ध्येय पदार्थ चूँकि ध्याता के शरीररूप पिण्ड में स्थितरूप से ही ध्यान किया जाता है, इसलिए कुछ आचार्य उसे पिण्डस्थ ध्येय कहते हैं ।
पिण्डस्थ ध्यान की पाँच धारणाएँ - १. पार्थिवी, २. आग्नेयी, ३. श्वसना, ४. ब्राह्मणी और ५. | तत्त्वरूपवती । (इनकी विशेष जानकारी के लिए देखें तत्त्वानुशासन एवं ज्ञानार्णव ३७ / २८ - ३१ विस्तारभय से यहाँ नहीं दिया जा सका है।)
(२) पदस्थ ध्यान लक्षण - “मंत्र वाक्यों में स्थिर होने को पदस्थ ध्यान कहते हैं। एक अक्षर से लगा कर अनेकप्रकार के पंचपरमेष्ठी वाचक पवित्र मंत्र पदों का उच्चारण करके जो ध्यान किया जाता है, वह | पदस्थ ध्यान है ।
पदस्थ ध्यान के योग्य मंत्र - एकाक्षरी मंत्र : 'अ', 'ॐ', ह्र, ह्रीं आदि, दो अक्षरी मंत्र : अर्हं, सिद्धं ध्या आदि । चार अक्षरी मंत्र : 'अरहंत' । पाँच अक्षरी मंत्र - अ, सि, आ, उ, सा, (ॐ) हां, ह्रीं, हूं, ह्रौं, हः, णमो सिद्धाणं, नमः सिद्धेभ्यः । छः अक्षरी मंत्र - 'अरहंत - सिद्धं', 'अर्हदभ्यो नमः', 'ॐ नमो अर्हते', सात अक्षरी मंत्र - णमो अरहंताणं, नमः सर्वसिद्धेभ्यः ।
सबसे बड़ा ३५ अक्षरों का महामंत्र णमोकार मंत्र है। इन पंचपरमेष्ठी वाचक मंत्रों का अवलम्बन लेकर अपने उपयोग को एकाग्र करने का, स्थिर करने का अभ्यास करना पदस्थ धर्मध्यान है।
(३) रूपस्थ - सर्व चिद्रूप का चिन्तवन रूपस्थ ध्यान है ।'
(४) रूपातीत - वर्ण-रस-गंध और स्पर्श से रहित केवलज्ञान दर्शनस्वरूप जो सिद्धपरमेष्ठी का या शुद्धता का ध्यान किया जाता है, वह रूपातीत ध्यान है। निरंजन का ध्यान रूपातीत ध्यान है।
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१. तत्त्वानुशासन १३४ २. वही, १८३ धारणाएँ ३. द्रव्यसंग्रह टीका, ४८/२०५, परमात्मप्रकाश टीका १/६/६, भावपाहुड़ टीका ८६ / २३६ ४. वसुनन्दि श्रावकाचार ४६४ ५. द्रव्यसंग्रह टीका ५०-५५ की पातनिका ६. द्रव्यसंग्रह टीका, ४८/२०५, परमात्मप्रकाश टीका १/६/ ६, भावपाहुड़ टीका ८६ / २३६ ७. द्रव्यसंग्रह टीका ५१ की पातनिका का २१६/९, ज्ञानार्णव ४० / १५-२६
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