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| इनके सिवाय प्रमाण-नय-निक्षेपों के द्वारा भी जीवतत्त्व का निश्चय किया जाता है। औपशमिक, | क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक - जीव के इन भावों से भी जीव का स्वरूप जाना | जाता है। ज्ञान-दर्शन उपयोगों में ज्ञानोपयोग आठ प्रकार का है और दर्शनोपयोग चार प्रकार का है। | | किसी वस्तु के भेद ग्रहण करने को साकार उपयोग कहते हैं और सामान्यरूप ग्रहण करने को अनाकार
उपयोग कहते हैं। ज्ञानोपयोग वस्तु को भेदपूर्वक ग्रहण करता है, इसलिए वह साकार-सविकल्प योग है और | दर्शनोपयोग वस्तु को सामान्यरूप से ग्रहण करता है, इसलिए वह अनाकार-निर्विकल्प उपयोग है।
जीव, प्राणी, जन्तु, क्षेत्रज्ञ, पुरुष, पुमान, आत्मा, अन्तरात्मा, ज्ञ और ज्ञानी - ये सब जीव के पर्यायवाची नाम हैं। चूंकि यह जीव वर्तमान में जीवित है, भूतकाल में भी जीवित था और अनागतकाल में भी जीवित रहेगा - इसलिए इसे 'जीव' कहते हैं । सिद्ध भगवान अपनी पूर्व पर्यायों में जीवित थे, वर्तमान में जीवित हैं और भविष्य में जीवित रहेंगे; इसलिए वे भी 'जीव' कहलाते हैं।
पाँच इन्द्रियाँ, तीन बल, आयु और श्वासोच्छ्वास - ये दस प्राण पंचेन्द्रिय जीवों के विद्यमान हैं। इसकारण ये 'प्राणी' कहलाते हैं। यह जीव बार-बार जन्म धारण करता है, इसकारण 'जन्तु' कहलाता है। इसके स्वरूप को क्षेत्र कहते हैं और उसे जानता है, इसलिए क्षेत्रज्ञ' भी कहलाता है। पुरु अर्थात् अच्छेअच्छे भोगों में प्रवृत्ति करने से यह 'पुरुष' कहा जाता है और अपने को (स्वयं को) पवित्र करता है, इसलिए 'पुमान' कहलाता है। ___ यह जीव नर-नारकादि पर्यायों में 'अतति' अर्थात् निरन्तर गमन करता रहता है, इसलिए 'आत्मा' कहलाता है और ज्ञानावरणादि आठ कर्मों के अन्तर्वर्ती होने से 'अन्तरात्मा' भी कहा जाता है। यह जीव ज्ञान गुण से सहित है, इसलिए 'ज्ञ' कहलाता है और इसीकारण ज्ञानी भी कहा जाता है।
इसप्रकार यह जीव ऊपर कहे हुऐ पर्याय शब्दों तथा उन्हीं के समान अन्य अनेक शब्दों से जानने के योग्य | है। यह जीव नित्य है; परन्तु इसकी नर-नारकादि पर्यायें जुदी-जुदी हैं। जिसप्रकार मिट्टी नित्य है, परन्तु ||११
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