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भगवान ऋषभदेव का केवलज्ञान कल्याणक फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन मुनिराज ऋषभदेव को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। केवलज्ञान अर्थात् सर्वज्ञता, सम्पूर्ण ज्ञान, परिपूर्ण ज्ञान । लोकालोक में जितने भी द्रव्य हैं, पदार्थ हैं, उनके सम्पूर्ण गुणों और सम्पूर्ण पर्यायों को एक समय में एक ही साथ जान लेना केवलज्ञान का विषय है। यह केवलज्ञान पूर्ण असहाय होता है, इसे इन्द्रियों और मन के सहयोग की कतई आवश्यकता नहीं होती। केवलज्ञान, सूक्ष्म, अन्तरित और दूरवर्ती - सभी पदार्थों को बिना किसी अन्य की सहायता के स्वत: ही अत्यन्त स्पष्ट हथेली पर रखे आंवले की भांति देखता-जानता है। कहा भी है -
सूक्ष्मान्तरितदूरार्थाः प्रत्यक्षाः कस्यचिद्यथा।
अनुमेयत्वतोऽग्न्यादिरिति सर्वज्ञसंस्थितिः ॥५॥ परमाणु आदि सूक्ष्म हैं, राम आदि काल से दूर हैं और मेरु पर्वत आदि क्षेत्र से दूर हैं - उन सभी को केवलज्ञान स्पष्ट जानता है। केवली भगवान किसी पदार्थ को जानने के लिए उसके पास नहीं जाते और पदार्थ भी उनके पास नहीं आते; फिर भी सभी पदार्थ बिना यत्न के ही दर्पणवत् प्रतिसमय उनके ज्ञानदर्पण में झलकते रहते हैं। न तो पदार्थों के परिणमन से उनका केवलज्ञान प्रभावित होता है और न उनके केवलज्ञान से पदार्थ प्रभावित होते हैं - दोनों अपने में पूर्ण स्वाधीन रहकर जानते हैं और जानने में आते हैं। दोनों में मात्र ज्ञायक-ज्ञेय संबंध है, अन्य कुछ भी संबंध नहीं है। | प्रश्न - यदि केवलज्ञान भविष्य की पर्यायों को भी जानता है तो फिर सम्पूर्ण भविष्य भी निश्चित होगा।