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॥ जो दिन में तीन बार एक-एक अन्तर्मुहूर्त तक प्रतिज्ञापूर्वक सर्व सावध योग का त्याग कर द्रव्य-भाव || सहित अपने ज्ञायक स्वभाव के आश्रयपूर्वक ममता को त्यागकर समता धारण करे, शत्रु-मित्र को समान
विचारे आर्त-रौद्र ध्यान का अभाव करे, अपने परिणामों का आत्मा में संयमन करे; उसे तीसरी सामायिक | प्रतिमा होती है। मात्र अन्तर्मुहूर्त तक एकान्त में बैठ सामायिक पाठ आदि पढ़ लेने से सामायिक प्रतिमा नहीं होती। अत: उपर्युक्त परिभाषा को लक्ष्य में लेकर बिना हठ के सहजरूप से सामायिक होना ही सच्ची सामायिक प्रतिमा है। (४) प्रोषध प्रतिमा - प्रथमहि सामायिक दशा, चार पहर सौं होय।
अथवा आठ पहर रहे, प्रोषध प्रतिमा सोय ।। जब चार प्रहर तक अर्थात् १२ घंटे बिना अन्न जल ग्रहण किए सामायिक की दशा रहे अथवा विशेष | ग्या में २४ घंटे तक रहे, उसको प्रोषध प्रतिमा कहते हैं। यह प्रक्रिया माह में चार बार प्रत्येक अष्टमी-चतुर्दशी को होती है। (५) सचित्त त्याग प्रतिमा - जो सचित्त भोजन तजै, पीवे प्रासुक नीर।
सो सचित्त त्यागी पुरुष, पंच प्रतिज्ञा गीर ।। शरीर की आवश्यकता पूर्ति हेतु भोजन लेना तो आवश्यक है। भोजन लेने का भाव भी आता है, किन्तु सचित्त भोजन नहीं लेते, सचित्त भोजन लेने का भाव भी नहीं आता। अतः इस प्रतिमावाले प्रतिज्ञापूर्वक सचित्त का त्याग कर देते हैं। पानी भी गर्म किया हुआ काम में लेते हैं। इस प्रतिमा में श्रावक की जो आन्तरिक शुद्धि एवं आत्मस्थिरता होती है, वह निश्चय प्रतिमा है और सचित्त भोजन-पानी का त्याग व्यवहार प्रतिमा है। अंकुरित बीज, अन्न एवं हरी वनस्पतियों को सचित्त कहते हैं। (६) दिवा मैथुन त्याग प्रतिमा - जो दिन ब्रह्मचर्य व्रत पालै, तिथि आये निशि-दिवस संभालै ।।
गहि नव बाढ़ करै व्रत रक्षा, सो षट् प्रतिमा श्रावक दक्षा।।।५