________________
BREFE
७२| हेतु धर्माचरण को ध्यान में रखते हुए अपनी सम्पूर्ण दिनचर्या को नियमित बनाकर जगत के सामने एक आदर्श
प्रस्तुत किया कि - इतने बड़े साम्राज्य का संचालन करते हुए भी आत्महित के लिए समय निकाला जा सकता है। एक कवि ने उनकी वैराग्य भावना के अभिप्राय को भाषा देते हुए लिखा है कि मुनिराज क्षेमकर के दर्शन और देशना से उनके जीवन में आमूलचूल परिवर्तन हो गया। वे विरागी हो गये। अब उन्हें चक्रवर्ती के वैभव में भी किंचित् भी सुख दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था। कवि कहता है कि -
'बीजराख फल भोगवें, ज्यों किसान जग मांहि । त्यों चक्री सुख में मगन, धर्म विसारै नाहिं ।।१।। इहविध राज करें नर नायक, भोगें पुण्य विशाल । सुखसागर में रमत निरन्तर, जात न जान्यो काल ।। एक दिवस शुभ कर्म संयोगे, क्षेमंकर मुनि वन्दे । देखि श्रीगुरु के पद पंकज, लोचन अलि आनन्दे ।।२।। तीन प्रदक्षिणा दे सिर नायो, कर पूजा थुति कीनी। साधु समीप विनय कर बैठ्यो, चरनन में दिठि दीनी ।। गुरु उपदेश्यो धर्म शिरोमणि, सुन राजा वैरागे । राजरमा वनितादिक जे रस, ते रस बेरस लागे ।।३।। मुनि सूरज कथनी किरणावलि, लगत भरम बुधि भागी। भवतन भोगस्वरूप विचार्यो, परम धरमअनुरागी ।। इह संसार महावन भीतर, भ्रमते ओर न आवै ।
जामन मरण जरा दव दाझै, जीव महादुःख पावै ।।४।। १. सांसारिक सुख में सुखबुद्धि नहीं रही।
10 FESE FRE