________________
७६
श
ला
का
पु
रु
ष
६
भगवान ऋषभदेव का दूसरा पूर्वभव वज्रनाभि चक्रवर्ती
जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र की पुण्डरीकिणी नगरी में अच्युतेन्द्र का जीव राजा वज्रसेन के घर एवं श्रीकान्ता रानी के उदर से वज्रनाभि नाम का पुत्र हुआ। वज्रनाभि ने पूर्व पुण्योदय से चक्रवर्ती पद प्राप्त किया । इनके पूर्वभव संबंधी सिंह, बन्दर, नेवला और शूकर के जीव भी वहीं वज्रनाभि के सहोदर हुए। उनके नाम विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित थे । जो वज्रजंघ के भव में आहारदान के समय साथ में थे, वे मतिवर आदि मंत्रियों के चार जीव भी ग्रैवेयक से चयकर वज्रनाभि के भाई के रूप में अवतरित हुए। उनमें मतिवर मंत्री का जीव सुबाहु, आनन्द पुरोहित का जीव महाबाहु, अकंपन सेनापति का जीव पीठ और धनमित्र सेठ का जीव महापीठ हुआ ।
इसप्रकार पूर्वभवों के संस्कारों के कारण सब जीव एक स्थान पर एकत्रित हो गये । श्रीमती का जीव जो अच्युत स्वर्ग में प्रतीन्द्र हुआ था, वह वहाँ से चयकर इसी नगरी में कुबेरदत्त वणिक के घर धनदेव नामक | पुत्र हुआ ।
'शलाका पुरुष' ग्रन्थ के कथानायक भगवान ऋषभदेव का जीव ही अपने दूसरे पूर्व भव में राजा वज्रसेन का पुत्र वज्रनाभि अपने पिताश्री को केवलज्ञान होने पर उनके पादमूल में सोलह कारण भावनायें भाकर इसी भव में तीर्थंकर प्रकृति बांधकर एक भव बाद भरत क्षेत्र में वर्तमान चौबीसी का प्रथम तीर्थंकर होनेवाला है । वह वज्रनाभि युवावस्था आने पर सर्व गुणों से सुशोभित होने लगा; किन्तु शास्त्राभ्यास होने से उसे यौवन का मद नहीं हुआ । सबप्रकार की राजविद्याओं में वह पारंगत था । नाभि में वज्र का चिह्न उनके चक्रवर्तित्व का परिचायक था और इसीकारण उनका नाम भी वज्रनाभि पड़ा था ।
व
ज़
FP
भि
च
क्र
व
र्ती
सर्ग