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साधक जीव ने दूसरी व्रत प्रतिमा में स्वस्त्री संतोषव्रत लिया था, अब इस छठवीं प्रतिमा में कुछ विशेष विशुद्ध परिणाम हुआ। अत: उसकी भोगों में आसक्ति घट गई। इसकारण इस प्रतिमा का धारी श्रावक नव बाढ़ सहित सदैव दिन में एवं अष्टमी चतुर्दशी को रात्रि में में भी ब्रह्मचर्य से रहता है। इस प्रतिमा में रात्रिभोजन करने/कराने का सर्वथा त्याग हो जाता है, अत: इसका दूसरानाम रात्रिभोजन त्याग प्रतिमा भी है। ७. ब्रह्मचर्य प्रतिमा - जो नव बाड़ सहित विध साथै, निश्चय ब्रह्मचर्य आराधै।
सो सप्तम प्रतिमा धर ज्ञाता, शील शिरोमणि जगत विख्याता।। सातवीं प्रतिमाधारी श्रावक की स्वरूपानन्द में विशेष लीनता बढ़ जाने से विषयासक्ति क्रमश: कम होती जाती है। अतः सदा के लिए नव बाड़ सहित ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन होना इस प्रतिमा की मर्यादा है । साधक इस भूमिका में स्पर्शन इन्द्रिय संबंधी स्वस्त्री के भोग का भी त्यागी हो जाता है।
प्रश्न : छटवीं-सातवीं प्रतिमा के छन्दों में 'नवबाढ़' शब्द आये हैं, वे नवबाढ़ें कौन-कौन-सी हैं ? |
उत्तर : १. परस्त्रियों के समागम में अधिक देर एकान्त में न रहना। २. परस्त्रियों को रागभरी दृष्टि से न देखना। ३. परस्त्रियों से परोक्ष में गुप्त पत्राचार और फोन आदि पर वार्ता न करना। ४. पूर्व में भोगे भोगों को स्मरण नहीं करना । ५. कामोत्तेजक गरिष्ठ भोजन नहीं करना। ६. कामोत्तेजक श्रृंगार नहीं करना। ७. परस्त्रियों के आसन, पलंग आदि पर नहीं बैठना न सोना । ८. कामोत्तेजक कथा गीत आदि नहीं सुनना। ९. भूख से अधिक भोजन नहीं करना। ८. आरंभ त्याग प्रतिमा - जो विवेक विधि आदरै, करै न पापारंभ।
सो अष्टम प्रतिमा धनी कुगति विजय रण थंभ ।। असि, मसि, कृषि, वाणिज्य आदि और गृहारंभ में चक्की, चौका, चूल्हे आदि में होने वाले पापारंभ | के विकल्पों एवं तत्संबंधी व्यापार का त्याग करना आरंभत्याग प्रतिमा है। ९. परिग्रहत्याग प्रतिमा - जो दसधा परिग्रह का त्यागी सुख संतोष सहित वैरागी।
समरस संचित किंचित् ग्राही, सो श्रावक नौ प्रतिमा धारी।।
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