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4|| साथ ही रहेंगे। यह श्रीमती का जीव भी तुम्हारे तीर्थकाल में दानतीर्थ की प्रवृत्ति चलाने वाले श्रेयांस राजा || होंगे और उसी भव में मोक्षप्राप्त करेंगे।"
अपने ही सबसे छोटे पुत्र जो ऐसे उत्कृष्ट मुनिपद के धारक हो गये; उनसे उपर्युक्त भविष्यवाणी सुनकर राजा वज्रजंघ हर्ष से रोमांचित हो गया। श्रीमति रानी, मतिवर आदि मंत्रियों एवं सिंहादिक को भी हार्दिक | प्रसन्नता हुई। तत्पश्चात् वे निस्पृह मुनिवर आकाशमार्ग से अन्यत्र विहार कर गये। | मुनिवरों के विहार कर जाने पर राजा वज्रजंघ ने पूरा दिन सरोवर के किनारे बैठकर उन मुनिवरों को | स्मरण किया एवं शेष समय उनकी आत्मसाधना एवं तपश्चरण की चर्चा में ही बिताया। पश्चात् वे प्रयाण करते हुए पुण्डरीकिणीपुरी जा पहुंचे और वहाँ कुछ काल रहकर अपने भतीजे को राजसत्ता संभालने में निपुण करके और राज्य को सुव्यवस्थित करके वापिस उत्पलखेटक नगरी लौट आये। ___ वज्रजंघ और श्रीमती का बहुत-सा समय भोगविलास में क्षणभर की तरह व्यतीत हो गया। आयु पूर्ण | होने का समय निकट आ गया, इसका भी उन्हें ध्यान नहीं रहा। एक बार वे शयनगृह में सो रहे थे। अनेक प्रकार के सुगन्धित पदार्थ सुलग रहे थे, अचानक बंद शयनकक्ष में धुंये से उनका दम घुटने लगा और कुछ ही देर में वे मूर्च्छित होकर मर गये।
जिन भोगों को हम सुख के साधन समझते हैं, वे पापभाव होने से आगामी भव में दुःख के कारण तो होते ही हैं; कभी-कभी वर्तमान में भी प्राणघातक बन जाते हैं। वज्रजंघ और श्रीमती की दुःखद मृत्यु का कारण वही जलता सुगंधित पदार्थ बना, जिसे ह ज के लिए जलाया था। जिन भोगों से प्राणियों की ऐसी शोचनीय दशा हो जाती है। फिर भी प्राणी उनसे विरक्त क्यों नहीं होते ? यह आश्चर्य है।
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