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4६| को सौंपना पड़ा। उस समय वह पुण्डरीक छोटी अवस्था का नावालिग था; किन्तु वही संतान की परिपाटी |
का पालन करनेवाला था।
राज्य की व्यवस्था कर राजर्षि वज्रदन्त अपने पुत्र-स्त्रियों तथा अनेक राजाओं के साथ दीक्षित हो गये। उनके साथ साठ हजार रानियों ने, एक हजार पुत्रों ने और बीस हजार राजाओं ने दीक्षा ले ली। उसी समय श्रीमती की पण्डिता धाय ने भी अपने अनुरूप दीक्षा धारण की।
वास्तव में पाण्डित्य वही है जो संसार-सागर से पार कर दे। कहते हैं सुख में सागरों की लम्बी उम्र भी कब बीत जाती है इसका पता नहीं चलता। वज्रदंत की वैराग्य भावना में कहा है - "सुखसागर में मग्न निरन्तर जात न जाने काल।"
चक्रवर्ती वज्रदन्त और पुत्र अमित तेज के मुनि होने पर उनकी पत्नी लक्ष्मीमति और पुत्रवधू को यह चिन्ता हुई कि उनका पोता पुण्डरीक इतने बड़े चक्रवर्ती के साम्राज्य को नहीं संभाल सकेगा। अत: उसने अपने साम्राज्य की सत्ता संभालने के लिए संदेश के साथ अपने बेटी-जमाई श्रीमती और वज्रजंघ के पास पुण्डरीकिणीपुरी के दूत के रूप में विश्वासपात्र व्यक्तियों को भेजा। उसे विश्वास था कि वज्रजंघ इस साम्राज्य को संभाल लेगा और उनके रहते बालक पुण्डरीक को सौंपा यह साम्राज्य निष्कंटक हो जायेगा। ___अपने श्वसुर वज्रदन्त चक्रवर्ती और अमिततेज के दीक्षित होने पर पुण्डरीक को सौंपे गये साम्राज्य के संभलाने के लिए सन्देश पाते ही वज्रजंघ ने सेना सहित प्रस्थान कर दिया। मार्ग में जब वज्रजंघ सहित सेना विश्राम हेतु पड़ाव पर यथास्थान ठहर गई तो वहाँ एक घटना घटी, जो इसप्रकार है - ___आकाशमार्ग से गमन करनेवाले श्री दमधर नामक मुनिराज सागरसेन मुनिराज के साथ वज्रजंघ के पड़ाव पर पहुँचे । उससमय श्रीमती वहाँ भोजन की तैयारी कर रही थी। संयोग से वन में ही मुनियों ने आहार लेने | की प्रतिज्ञा की थी। राजा वज्रजंघ ने उन्हें देखा। दोनों मुनिराजों को वज्रजंघ ने सहर्ष पड़गाहन किया।
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