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(३९| परिणामों की क्रूरता से राजा अरविन्द नरक गया। हे राजन यह कथा इस अलका नगरी के लोगों को ||
आजतक याद है। अत: ऐसी रागरूप भावहिंसा से भी बचना चाहिए।"
महाराज महाबल को दूसरी कथा सुनाने के माध्यम से पाठकों को विषय-कषाय त्यागने और सदाचार के फल द्वारा शिक्षा देने हेतु मंत्री स्वयंबुद्ध के मुख से आचार्य कहते हैं कि - "हे राजन आपके इस वंश में एक दण्ड नाम का विद्याधर हो गया है। वह बड़ा प्रतापी था। उसका मणिमाली नामक एक पुत्र था। जब वह बड़ा हुआ तब राजा दण्ड ने उसे युवराज पद पर नियुक्त कर दिया और स्वयं इच्छानुसार भोगों में अत्यधिक तन्मय हो गया । उस विषयासक्त राजा ने आर्तध्यान से तिर्यंच गति का बन्ध कर लिया, परिणामस्वरूप वह अपने ही भण्डार में बड़ा भारी अजगर हो गया। उस अजगर को पूर्व भव का जातिस्मरण ज्ञान हो गया, इसकारण वह भंडार में मात्र अपने पूर्व पर्याय के पुत्र को ही प्रवेश करने देता था, अन्य को नहीं।
एक दिन राजा मणिमाली किन्हीं अवधिज्ञानी मुनिराज से पिता के अजगर होने का वृतान्त मालूम कर पितृ भक्ति से उनका मोह दूर करने के लिए उस भण्डार में गया, जहाँ अजगर रहता था और धीरे से अजगर के आगे खड़ा होकर स्नेहयुक्त वचन कहने लगा - हे पिता ! आपने पूर्व भव में धन आदि में अत्यन्त ममत्व
और विषयों में अत्यन्त आसक्ति की थी। इन्हीं अशुभ भावों से आप इस तिर्यंच गति में अजगर की निकृष्ट पर्याय में आकर पड़े हो। यह विषयरूपी जहर अत्यन्त कटुक है, इसलिए धिक्कार योग्य है । हे पिता ! अब भी इस विषय और मोहरूप आमिष को छोड़ दो। ___अपने पुत्र के धर्मामृतरूप वचनों का रसपान कर अजगर की पर्याय में राजा दण्ड के जीव का मोहान्धकार नष्ट हो गया। उसके विवेक नेत्र खुल गये। उस अजगर को अपने विगत जीवन में हुए पापों का भारी पश्चात्ताप हुआ। उसने धर्म औषधि ग्रहण कर विषयासक्ति छोड़ दी। उसने संसार से भयभीत होकर आहार-पानी छोड़ दिया। शरीर से भी ममत्व त्याग दिया। उसके प्रभाव से वह आयु के अन्त में शरीर त्यागकर बड़ी ऋद्धि का धारक देव हुआ। उस देव ने अवधिज्ञान के द्वारा अपने पूर्वभव जाने तथा अपने पुत्र मणिमाली के पास