________________
EFFE
एक दिन दो छिपकलियाँ परस्पर में लड़ रही थीं कि लड़ते हुए उनकी पूँछे कट गईं। पूँछ से निकली | खून की कुछ बूंदें राजा अरविन्द के शरीर पर आकर पड़ीं। उन खून की बूंदों से उसके दाह्मज्वर की व्यथा कम हो गई। वह विचारने लगा 'आज मेरे भाग्य से बड़ी अच्छी औषधि मिल गई है' उसने अपने द्वितीयपुत्र कुरुविन्द को बुलाकर कहा - 'हे पुत्र ! मेरे लिए खून से भरी एक बावड़ी बनवा दो।' राजा अरविन्द को कुवधिज्ञान था। इसकारण विचार कर पुन: बोला - 'इसी समीपवर्ती वन में अनेकप्रकार के मृग रहते हैं, उन्हें मारकर उन्हीं के खून से बावड़ी भरवा दो।' कुरुविन्द मुसीबत में पड़ गया। उसे एक ओर पिता की आज्ञा की अवहेलना का डर और दूसरी ओर हिंसा के भयंकर पाप का भय । एक क्षण तो किंकर्तव्यविमूढ़ हो चुपचाप खड़ा रहा। पश्चात् उसने वन में विराजमान अवधिज्ञानी मुनिराज की शरण में जाकर पूछा - 'प्रभो! मेरे पिता की ऐसी कठोर आज्ञा है, जिसका पालन करना भी मुझसे संभव नहीं है और मैं उनकी आज्ञा की अवहेलना भी नहीं करना चाहता; अत: आपकी शरण में आया हूँ, आप उचित मार्गदर्शन करें।'
मुनिराज ने अवधिज्ञान से जानकर कहा - "हे कुरुविन्द ! तेरे पिता की मृत्यु का समय आ गया है और उसने नरक आयु का बन्ध कर लिया है, इसकारण उसके परिणामों में क्रूरता-निर्दयता आ गई है, अत: तुम पशु हिंसा के पाप से बचते हुए उपायान्तर से पिता की आज्ञा का पालन करो!"
मुनिराज का इतना मार्गदर्शन पाते ही कुरुविन्द को तत्कालबुद्धि से समझ में आ गया कि क्यों न लाख से बावड़ी के पानी को खून की तरह लाल करा दिया जाय । इससे पिताजी की आज्ञा का पालन भी हो जायेगा और हिंसा भी नहीं होगी। कुरुविन्द ने ऐसा ही किया। इससे अरविन्द बहुत ही हर्षित हुआ; क्योंकि वह उस लाल पानी को सचमुच का रुधिर समझकर उसमें क्रीड़ा करने लगा; परन्तु कुल्ला करते ही उसे मालूम हो गया कि यह कृत्रिम रुधिर है। यह जानते ही वह विवेकहीन राजा अरविन्द रुष्ट हो गया और पुत्र को मारने के लिए दौड़ा; परन्तु दौड़ते हुए इसतरह गिरा कि अपनी ही तलवार से उसका हृदय विदीर्ण हो गया | | और वह मर गया और कुमरण कर नरकगति में गया। देखो! एक भी जीव का घात न होने पर भी अपने ||
२