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॥ रत्नसार ॥
योगे हणतां वैर अने पाप बे नीपजै.ते पाप ने उदयै असाता, आकुलता, उद्वगता, अथिरता उपजै १. वैर ने योगै ते जीव आवी यथा योगै पीड़े, ए भाव बीजो २... ..
३ धर्म, पुण्य, पाप कर्म श्या थी ऊपजै ते त्रीजो' प्रश्नः-तेह ना उत्तर ए ३ तीन मध्ये पहलो बोल जे धर्म १ ते एक मोहनी कर्म ना क्षयोपशम थी. ते किम ?दर्शन मोहनी कर्म ना क्षयोपशम थी धर्म ऊफ्जै. तथा चारित्र मोहनी ना उदय थी पुण्य पाप ऊपजै. - अविरत नो उदय मंद थाइ तथा क्षयोपशम थाइ तिवारे विरति नो उदय थाइ. तिवारे षट काय ना जीव ऊपर दया प्रणाम ऊपजे तेथी पुण्य ऊपजे २.
तथा अविरति ना उदयै तीब्र पाप नीपजै ३.
ते मध्ये एटलो विशेष जे पुण्य पाप ते चारित्र मोहनी उदय मंद तीब्रै होइ. अने धर्म दर्शन मोहनी