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॥ रत्नसार ॥ (४५) गुणंतरमो प्रश्नः-ते हिवै द्रव्य नी शक्ति, गुण नो प्रकाश,पर्याय नो ठरण, एतला वस्तु लीधै आत्म द्रव्य छ. ते सम्यक् दर्शन थी द्रव्य शक्ति प्रगटै. सम्यक् ज्ञान गुण थी प्रकाश थाइ. सम्यक् चारित्रै परिणाम ठरण गुण वधे. ए भाव.
७०. जीव में उपयोग केतला छै ते सित्तरमो प्रश्नः-ते जीव नें उपयोग बे-एक शुद्ध १ बीजो अशुद्धरते मध्ये शुद्ध मांहि कोई भेद नथी.अशुद्धोपयोग ना बे भेद-एक शुभ १ बीजो अशुभ २. तिहां शुभोपयोगै वत्तै (ते जीव) पुण्य उपार्जे, ते थी सुगति पामै. तथा अशुभोपयोग वत्तै ते जीव दुःख रूप कुगति पामै. तथा शुद्धोपयोगै वर्त्ततो ते जीव सिद्ध गति पामै.
___७१. हिवै इकोत्तरमो प्रश्न–ते हिवै शुद्धोपयोग ते सम्यक्त पाम्या पछी होई अने अशुद्धोपयोग नाघर ना सर्वे संसारी मिथ्या दृष्टी जीव ने होइ. ते मध्ये मिथ्या दृष्टी ने शुभ क्रिया होइ पिण, शुभोपयोगै नहीं. शुभोपयोग तो शुद्ध ना घर नो छै ते अणइच्छक रूपै होई.