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॥ रत्नसार ॥
समस्त परिग्रह विरमण वसा२०.अभ्यंतर नें वाह्य परिग्रह विश्वा१०. पर आत्मा एवं५. स्त्री पीहर आत्म एवं २॥. स्त्री आत्मा दत्त आत्मा १. अभ्यन्तर परिग्रह क्रोध मानादिक नो नहीं पले. अने वाह्य परिग्रह दस प्रकार नो ते पलशे. एवं १० वाह्य परिग्रह मांहे बे भेद ते किहा? एक आत्म परिगह अने पर परिग्रह. ते मध्ये प्रात्म परिगृह नो नहीं पलै, पर परिग्रह नो पलशै. एवं ५, वलि पर परिगह माहि बे भेद ते किहा? आत्मनियोग अने स्त्री पीहर. श्रात्म नियोग ते इयूं कहिये? जेवाणोतरादिक नो जे गर्थ ते आत्म नियोग ते पलशे. अने स्त्री ना पीहर नो परिगह ते श्रात्म नियोग नो नही पलै. एवं २॥. स्त्री ना पीहर नो परिगृह तेहना बे भेद ते किहा? एक स्त्री दत्त अने एक स्त्री अदत्त एवं १। वसो थयो. इति पंचा अणु व्रतानि.
इम श्रावक ने पांच अणुवत सवा वसानो होई, तेहनो विवरण कयु छै. इत्यर्थः इति पंचाणु व्रत संपूर्ण.