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॥ रनसार ॥ (२२७) परिग्रहो फरसकीयगाचेव । इच्छी पिहर अप्पो इच्छि नियदत्त निओय॥६॥
स्वजनकाजेधर्मकाजे मुकी परकाजे . बोलवा नियम. ए मृषावाद अणुव्रत समस्त म्रषावाद नियम २०, सूक्ष्म बादर भेदे १०, आत्म काजे पर काजे ५, स्वजन पर काजे २॥,धर्म पर काजे ११. एवं द्वितीयं. ___ अथ तृतीयं अणुवत राजनिग्रह कारीउपराउं अण दीधुं लेवा नियम, समस्त अदत्ता दान पचखांण २०, सूक्ष्म बादर भेदे १०, सराज निग्रह निराज निग्रह ५, श्रात्म राज निग्रह पर राज निग्रह २॥, पियारी दीधी पियारी अण दधिी एवं १, राज निग्रह पडै तेहनो पचखाण. ते सराज निग्रह मांहे बे भेद- एक आत्म राज निगह, एक पर राज निग्रह. आपणां घर मांहि नी चोरी ते आत्मराज निग्रह, पारकी चोरी करिये ते पर राज निग्रह कहिये. हिवै ते आत्म राज निग्रह ते मोकलो, परराज निगृह नो पचखांण. हिवै परराज निग्रह ना बे भेद ते किहां ? एक पियारी दीधी,