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(५) ोरै ध्यावे ॥ परम प्रभु०॥२॥ सहज शक्ति अरु भक्ति सुगुरु की, जो चित जोग जगावे । गुन पर्याय द्रव्य सुं अपने तो लय कोऊ लगावे॥ परम प्रभु० ॥ ३ ॥ पढत पुरान वेद अरु गीता, मूरख अर्थ न भावे । इत उत फिरत ग्रहत रस नाही, ज्यों पशु चर्वित चावे ॥ परम प्रभु० ॥४॥ पुद्गल से न्यारो प्रभु मेरो, पुद्गल श्राप छिपावे । उन से अंतर नहीं हमारे, अब कहां भागो जावे ॥ परम प्रभु.॥५॥ अकल अलख अज अजर निरंजन, सो प्रभ सहज सहावे । अंतरजामी पूरन प्रगट्यो, सेवक जस गुन गावे ॥ परमप्रभु०॥६॥
॥ राग धनाश्री ॥... चेतन ज्ञान की दृष्टि निहालो । चेतन०॥टेक!! मोहदृष्टि देखे सो बाबरो, होत महा मतवालो। चेतन०।१॥ मोहदृष्टि अति चपल करत है, भव वन वानर चालो ।। योग वियोग दावानल लागत, पावत नाहिं विचालो ॥ चेतन ॥२॥मोह दृष्टि कायर नर डरपै, करे अकारन टालो। रण मैदान लडै नहिं अरि सुं, सूर लडै ज्यूं पालो ॥ चेतन० ॥३॥ मोह दृष्ठि जन जन के परवश