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(२०) ॥ गाथार्थ ॥
२२४ वें प्रश्न में 'उसेहंगुल मेगं' इत्यादि गाथा दो पाई है उन का अर्थः___ उत्सेधांगुल एक ने हजार गुणो करे प्रमाणांगुल थाय,तेज बमणों करे तो वीरनेा अंगुल थाय आत्मांगुले करी घरादि मापो, उत्सेधांगुल प्रमाणथी देही नो मापो, अने पर्वत १ पृथ्वी २ विमानादिक मापा प्रमाणांगुल थी मापणा.
२३० वें प्रश्न में 'नाहं दोसी' इत्यादि गाथा तीन आई है उन का अर्थः__नथी हुं बीजा नो द्वेषी,न माहरे बीजो कोई, हां माहरो श्यु छे ए आत्मभावनाए करी राग द्वेष विलय जाय. १. ज्ञान नी विशुद्धि छे ते आत्मा एकांत नथी शुद्ध थयो तो श्युं ? जे माटे नाण ते अात्मा, आत्म तेहिज ज्ञान होय छे. २. जे माटे भगवतीजी मां कह्यो छे आत्मा ते सामायक, आत्मा ते हिज सामायक नो अर्थ, ते माटेज ए सूत्र कहे छे आत्मा परिणाम.३.
इसी प्रश्न में 'येषां नचेतो' इत्यादि संस्कृत