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पंडित श्रीदेवचंद्र गणि विरचिता
श्री अध्यात्मगीता.
पंडित श्री श्रमीकुंवरजी! कृत बालाबोधः सहिता.
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समस्त जैन भाइयों को विदित हो कि ऊपर लिखे नामवाला ग्रन्थ अध्यात्म विषय में अत्यन्त उत्तम हैं. इस में कर्तृत्वता, ग्राहकता, व्यापकता, दान लाभादि, आत्मा के अनादि काल से परानुयाई प्रणमी रहे हैं तिन्हें स्वरूपानुयाई प्रणमात्रवा तथा उन के विषै निश्चय व्यवहारादि नय निक्षेप प्रमाण, अपवाद, उत्सर्गादि, नित्य अनित्यादि, कर्त्ता कारण कार्यादि, ऐसें अनेक विषयों का वर्णन स्याद्वाद अनुसार बहुत उत्तमता के साथ किया है, और बालाबोध नाम की अलभ्य टीका से इस का गहन अर्थ बहुत ही सरलता के साथ समझ में आ सक्ता है. अर्थ की स्पष्टता और सुगमता का अनुभव पुस्तक देखनेही से होगा. इस ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति हम को मिली तब बहुत
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