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श्रीरत्नसार में जो गाथाएं आई
है उन का भावार्थ.
१६ वें प्रश्न में 'सव्वदुक्खाण' इत्यादि गाथा आई है उस का अर्थः- सर्व दुक्खों का अंत करें.
२३वें प्रश्न में 'धम्मो धम्म फलंहि' इत्यादि गाथा आई है उस का अर्थः
धर्म है सो धर्म फलहि है. द्वेष और नहिं हर्ष होय वो संवेग कहिये. संसार उपर देह उपर विषयादिकों उपर तृष्णा मिटे त्याग होय एटले संसार देह शरीर आर भोग विषयों ने विषे विरति भाव होय तेने वेराग कहिये.
२५ वें प्रश्न का अर्थ ग्रन्थ समाप्त हुआ उस के आगे प्रथम पृष्ठ में छपा है.
२७ वें प्रश्न में 'धम्मो वत्थु सहावो' इत्यादि गाथा आई है उस का अर्थः --