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(८) ॥ गाथार्थ ॥
धर्म छै ते वस्तु नो स्वभाव छे, और क्षमादि भाव धर्म ते दशप्रकार क्षमादि जाणवो, और रत्नत्रय ज्ञानादि ते धर्म है, और जीवो नी रक्षा करवी ते पिण धर्म छे. __६६वें प्रश्न में 'पुइयाइ सुवचसहियं' इत्यादि गाथा आई है उस का अर्थः__ भला व्रत सहित पूजादिक में पुण्य जिनराज तीर्थकरे दीठो परूप्यो, अने मोह कोह रहित परिणाम ते आत्मानो धर्म केवलाई दीठो. .. -७२वें प्रश्र में ‘लक्ष्य लक्षणे ज्ञायते' है उस का अर्थः
लक्ष जे आत्मा ते लक्षण करी जाणिइं.
७५वे प्रश्न में 'जयं चरे' इत्यादि गाथा आई है उस का अर्थः--
जयणाई चाले, जयणांई उभो रहे, जयणांई बेसे, जयणाई सुई, जयणाई भोजन करे, जयणाई बोलतो थको पाप कर्म न बांधे...