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मति जो अज्ञानी, चालत चाल अपूठी। जन दशा उन मेंही नाहीं, कहे सो सबही झूठी ॥ परम ॥ ४॥ पर परणति अपनी कर माने, किरिया गर्वे घेहलो । उन कू जैन कहो क्यों कहिये, सो मूरख में पहलो॥ परम० ॥५॥ ज्ञान भाव ज्ञान सब मांही, शिव साधन सहिओ। नाम भेष से काम न सीझे, भाव उदासे रहिए ॥ परम ॥ ६॥ ज्ञान सकल नय साधन साधो, क्रिया ज्ञान की दासी । क्रिया करत धरतु है ममता, याहि गले में फांसी ॥ परम० ॥ ७ ॥ क्रिया बिना ज्ञान नाह कबहूं, क्रिया ज्ञान बिनु नाहीं। क्रिया ज्ञान दोउ मिलत रहतु है, ज्यों जलरस जल मांहीं ॥ परमप्रभु. ॥८॥ क्रिया मगनता बाहिर दीसत, ज्ञान शक्ति जस भाँजे । सद् गुरु सीख सुनै नहिं कबहूं, सो जन जन ते लाजे ॥ परम ॥६॥ तत्व बुद्धि जिन की परणति है, सकल सत्र की कंची। जग जस वाद वदे उन ही को, जैन दशा जस ऊंची ॥परम ० ॥१०॥
॥राग सारंग॥ कंत बिना कहो कौन गति नारी ॥टेक ॥ सुमति