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रत्नसार ग्रन्थ में २५ वां प्रश्न ध्यान प्रतिबंधक नाम का आया है उस
का अर्थ इस मुजब है:शुद्ध आत्मादि नव तत्वों के विर्षे विपरीत बुद्धि को उत्पादक वो मोह मिथ्यात्व है. विकाररहित आत्म ज्ञान तिसे विलक्षण वीतराग चारित्र में मुंभावे ऐसो मोह एतावत् चारित्र मोह वो द्वेष कहते हैं. प्रश्न-चारित्र मोह शब्द करके राग द्वेष कैसे कहिये? इस का उत्तरकषायों में क्रोध मान ये दोय द्वेषांग हैं, माया और लोभ ये दोय राग के अंग हैं. नव नो कषाय में तीन वेद हास्य रति दोय ये पांच राग के अंग हैं. अरति और शोक ये दो और भय जुगुप्सा ये दो मिल च्यार द्वेष के अंग जानना. यहां शिष्य कहता है-राग द्वेषादिक क्या कर्म-जनित है कि प्रात्म-जनित है ? ऐसे प्रश्न का पीछा उत्तर-नय की वांछा के वश करके वांछित एक देश शुद्ध निश्चय करके कर्म-जनित कहते हैं