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(२ ३२) , ॥ रत्नसार ॥ समरे जीव समस्यो, जीव समरै योग समरै, योग समरे परिणाम समस्यां,परिणाम समरै अध्यवसाय समस्यां, तिहां जीवतव्य समरै.शुद्धोपयोगे रूप शुद्ध श्रद्धान समकितते योग समरै, व्रत पचक्रवाणे प्रणाम समरै,अप्रमत्त ताइअध्यवसाय समरे, शुक्ल ध्यान रूप क्षपक श्रेणी इत्यादिक. इम परिपाटी ग्रन्थांतरे घणी है. इम विगडे पण, उपराठी रीते लीजे * इति अर्थ.
३०१.तथा परमाणु प्रदेश मध्ये श्यो विशेष छै ते कहै कैः- स्वभाविक तै परमाणु, विभावी ते प्रदेश, जे परमाणु बन्ध ने वलगो छै तिहां सुधी प्रदेश कहाये. छुटो पडयो ते परमाणु पण बरोबरी दोइ उणो ते दस पूर्ण ते खंध. इति भाव. . ३०२. पर्याप्त अने प्राण मध्ये श्यो विशेष ? तत्रोत्तरं-उपजती वेला अन्तर्मुहूर्त माहि जीव करै ते पर्याप्ता, पछै जीवै तिहां सुधी रहे ते प्राण कहीये. - * पाठान्तरे ‘लिख्यो छै.