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(२२८) ॥ रत्नसार ॥ एक पियारी अण दीधी. पार की दी वस्तु आणीश्रापै एतले कोई नी दृष्टी वंची एतले न लेवे सवा वसो श्रीजी व्रत नो जाणवो. ___ अथ चतुर्य स्वदारा संतोष, परदारा विवर्जना रूप ए मांहि सर्व फलामणी है. समस्त मैथुन विरमण वसा २०.मन वचन काया १०, स्वदारा परस्त्री ५, वेस्या अपरस्त्री मांहि बे भेद ते किहा? वेस्या में अपरस्त्री ते मध्ये वेस्या नो नही पलै, अपर स्त्री नो पलसै. एवं २॥. अपर स्त्री मांहि बे भेद छै ते किहा? कमारी अने परणी, अपर स्त्री ते कुमारी नहीं पलें, परणी परस्त्री नो पलसै. कुमारी श्या माटे मोकली ? जे विवाह मल्यो छै, परण्या नथी ते उपरे स्त्री नो अभिलाष धरे ते माटे, एतले सवा वसो रह्यो.आणंद श्रावक स्यसपादा विशेषाधिक.
अथ पांचमें आपणो परिग्रह स्त्रियादिक नो करी श्रापणे कार्ये आण्यो होइ ए परिग्रह अणुव्रत. तिहां