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॥ रत्नसार ॥ (१३५) नो भावार्थ जाणवो. इति बुद्धी च्यार४.
१७४. एक सौ चमोत्तरमो प्रश्नः- तथा जाती समरण ज्ञान ते मति ज्ञान नो भेद छै. विभंग ज्ञान जे देखै ते अवधि दर्शन ना पेटा मांहि छै. इति. ' था१७५. चन्द्रमा नी चाल नो एकसौ पिच्योत्तरमो प्रतः- मेष राशि नो सूर्य होई तिहां कन्या राशि ना सूर्य ताई चन्द्रमा नी चाल उत्तर दिस भणी, तथा तुल राशि थकी मांडी मीन ताई चंद्रमानी चाल दक्षिण दिशा भणी होइ. इति.
१७६. अथ मिथ्यात्व अविरत हेतु नो एकसौ छिहोतरमो प्रश्नः- जेहवो आत्मा नो शुद्धोपयोग वस्तु आचरवानें जिम मिथ्यात्व बलवर्ते छ, तिम एहनी प्रणमन सुख निवारवाने अविरति बलवर्ते छै, जिहां श्रात्मा ना प्रणमन अविरत नो उदय अविरत रूप आत्मा प्रणमै तिहां एह ने अत्मिक एकाग्रता रूप सूख न पामै, ते सम्यक् दृष्टी ने अविरती हेतु मिटै.