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॥ रत्नसार ॥ (१७७) णानादिक हास्पजन किंवा नाट्यादिकंदर्प रूपो वा २. प्रमादो रात्रौ दिवा प्रति लेखना प्रमार्थ ना द्यनुपजुक्ता ३. कल्प कारणे दर्शनादि चतुर्विंशति रूपेसती गितार्थस्य कृत योगिनोपयुक्तस्या अयततनया अधा कर्माद्या दान सुरूपा ४. इति.
२३६. हिवै पांच क्रिया मांहि जीव अल्पा बहुत्व किम होय इति प्रश्नः-पांच क्रिया मांहि सर्व थी थोड़ा जीव मिथ्यात्व क्रियावाला. तेह थी अपचक्खाण क्रियावाला असंख्यात गुणा अधिका समाकत मांहे भल्या ते माटे, तेह थी परिग्रहनांक्रियावाला असंख्याता वधता देशविरति मांहि भल्या ते माटै, तेह थी श्रारंभ की क्रिया वाला तेह थी घणा संख्याता अधिका छै छठा गुण ठाणावाला मुनि भेलै ते माटै, तेथी मायावत्रीि क्रिया ना धणी संख्यात गुणा अधिका ते नवमा गुण ठाणावाला मुनि वध्या. ए भाव पन्नवणासूत्र मध्ये छै. इति.
२३७.हिवै लेश्या नो देवताश्रासरी अल्पा बहुत्व कहै