________________
॥ रत्नसार ॥ (१९५) जिणवुत्तं ॥३॥) आस्यार्थः- चोदे राज लोक असंख्याती कोडा कोडि जोयण नो छै. ते मध्ये एक जोयण लिजिये तेहना अंगुल संख्याता थाई. ते मध्ये थी एकांगुल लीजे. तेहना असंख्यात मो भाग लेखवै. ते माहेलो एक भाग लीजिये. ते माहे असंख्यातां गोला छै. तेमाहेलो एक गोलो लीजिये, ते एक गोल मांही असंख्याती निगोद छै. ते मांहेली एक निगोद लीजिये. ते निगोद में अनंता जीव छै. ते माहिलो एक जीव लीजिये. एक जीव ने असंख्याता प्रदेश छै. ते एक जीव ने प्रदेशे प्रदेशे अनंती कर्म वर्गणा छै. ते माहिली कर्म वर्गणा लीजिये ते माहिं अनंता परमाणुया छै. ते मांहेलो एक परमाणु लीजिये. ते मांहि अनंता पर्याय. अनंता भेलो परणमै, एहवी शक्ति छै.एहवो श्री वीतराग नो वचन तहत करी मानीये, सर्धिये ए भाव. इति.
२६५.हिवै असंख्यात समै एक श्रावली थाइ,एहवी २५६आवलीए एक क्षुल्लक भव थाय. एक श्वासोसास