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॥ रत्नसार ॥
प्राणातिपात अणुव्रत नी दया वशा १ नी होइ ते पूर्वे लिख्यो छै तेथी जोज्यो तथा बीजा अणुव्रत वीषे आपणे काजे स्व साधु ने समस्त जीव रक्षा
लापराध जीवने हणवानी तो जयणा छे.जेथी करी सापराधीनी दया, श्रावकथी सदा सर्व रीतेथी पले नहीं.
जेम के घरमां चोर पेठा छे.तेओ आपणी चीज लइ जाय छे ते मारया कूटयों बिना छोडे नहीं. वली बीजू दृष्टांत एक पापणी स्त्रो साथे कोइ अन्य पुरुषने अनाचार सेवतां देखिये तो तेने तस्दी दीधा विना ते छूटे नहीं. ए प्रमाणे सापराधी कहीएं. बीजं पण क्यारेक राजानी आज्ञाथी युद्धमा गया थका संग्राम करवो पडे, त्यारे त्यां पागलथी शस्त्रादिक चलाविये नहीं. सामो शत्रु प्रथम शस्त्रनो मारो करे, त्यारे पछी आपणे करीएं. ए माटे; सापराधी नो संकल्प पण न छूटे. त्यारे बाकी रहेला पांच वशामांथी पण अडधा गया, बाकी अढी वशा रह्या. एटले संकल्पीने “निरपराधी जीवने न मारूं" एटलुंज फकत रां. एमां पण वली बे भेद छे एक सापेक्ष, अने बीजो निरपेक्ष, तेमां सापेक्ष निरपराधी जीवनी दया, श्रावकथी पले नहीं तेनुं कारण शुं? ते कहेछे. श्रावक पोते घोडा, घोडी, बेल, बलद, रथमां, गाडीमां, के इत्यादि बीजा बाहनो पर बेसे छ. त्यारे घोडा प्रमुख बलद विगेरे ने चाबका के आर लगावे छे, पण विचारतो नथी के, घोडाएं के बलदे शो अपराध करयो छे ? एमनी पीठ ऊपर तो चढी बेठो छे. ए जीवना शरीर सामर्थ्यनी तो कांइ खबर छे नहीं. जे आ जीव,बलवान् छे के दुर्बल छे. पोते ऊपर चढी बेठो, ने वली तेने गाल प्रमुख दइने