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॥ रत्नसार ||
(२२३)
पर्याप्ता ने ५ अपर्याप्ता एवं १० नी दया श्रावक नें
न होइ.
हिंवै १० बादर ते किहा ? बेंद्री, तेंद्री, चोरेंद्री पंचद्री ४ ए पर्याप्ता ने अपर्याप्ता एवं भेद ८. पंचेद्री संनी असनी एवं १० भेद बादर ना थया ते मध्ये श्रावकने संकल्पी न मारूं प्रारंभ जयणा एवं ५भेद रह्या ते मध्ये अपराधे हरायों, निरअपराधे नहीं, एतले शवसा रह्या. ते मध्ये सापेक्षया श्रने निरपेक्षा निर्दय परौं न हरायो एवं १ | वसा नी दया श्रावक ने त्रस जीव नी रही. इति प्राणाति पातिनी जीव दया १| वसा नी. इति.
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२ हिवै मृषाबाद अणु वृत समस्त मृषावाद नियम साधु नें २० वसा. सूक्ष्म ने बादर करतां १०, उपयोगै अणा उपयोगै २०, अत्तट्ठा परट्ठा आत्मपर एवं५, स्वजन परजन करतां २॥ धर्मं अपर अधर्म परमार्थे १1. अत्र गाथा - ( सुहुमबादर मिलियं
पाण परिभेयगं भवे दुविहं सयणं परगं च तथा