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(२०२) ॥ रत्नसार ॥ अत्यंतबल संपदा होइ, पृथ्वि पर्वतादिक उपाडै, अचिंतित पराक्रमी होइ ४. पांचमी महिमा सिद्धि ते मोटो लाख योजन नो शरीर करै ५. छठी अणिमा सिद्धि ते नाहनो कुंथुत्रा जेवडं रूप करीने भीत तथा पर्वत मध्ये निकले अने पोते विधन न पामै६. सातमी यत्र कामा वसायित्वं सिद्धि ते जिहां उपयोगेदे तिहां जाणै, मति श्रुत ज्ञान अवधिज्ञान ने योगै ७. अाठमी प्राप्ति सिद्धि ते सकल मोटी वस्तु प्रत्यक्ष पणे देखै, रूपी वस्तु देखे, अवधि ज्ञान दर्शन में योगै८. ए अष्ठ महा सिद्धि मुनिराज ने होइ तेहना शब्दार्थ जाणवा. - २६६.हिवै ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ने७००वर्ष नो आयु हतो ते भोगवी ने नरके गयो. तिहां ३३ सागर नो श्रायु भोगवै छै. तेतलो काल विषय ना सुख भोगव्या ते ऊपर केतलो दुख पाम्यों तेहनी विगत वर्ष १०० ना दिवस ३६००० थाय, तिवारे ५०० वर्ष ना दिवस २५२००० थाय, तेहना मुहूर्त ५५६००००, से एक मुहूर्त ना ३७७३ स्वासोस्वास थाइ. ते