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(२१४) ॥ रत्नसार ॥ अवधि ज्ञान थई आवै. त्यारे एक समै रही वली पडै. विभंग ज्ञान नो विभंग ज्ञाने ज श्रावै. इम अवधि ज्ञान जघन्य थी एक समय होइ. मन पर्यव ज्ञान जघन्य थी एक समै उत्कृष्टै देसै उणा पूर्व कोडी. एक समै ते किम? जिवारे अप्रमत्त गुण ठाणे वर्ततो मनपर्यव ज्ञान उपजीने जाइ तिहां एक समै जाणवो. केवल ज्ञान ना धणी ने सादि अनंता काल जाणवा.
हिवै मात अज्ञान अने श्रुत अज्ञान ना भांगा काल प्रासरी ३ जाणवा- एक अनादि ने अनंत ए अभव्य ने १. अनादि ने सांत ए भव्य ने२. सादि अने सांत ते समकित थी पडी पछै चढे तेहने होइ ३. सादि अने सांत छै तेहने जघन्य थी अंतर्मुहूर्त अने उत्कृष्टो ते अई पुद्गल परावर्त जाणवो. __हिवै विभंग ज्ञान नो काल लिखिये छैःजघन्य तो एक समय अने उत्कृष्टै सागरोपम ३३ झाझरो. मनुष्य नो आयु पूर्व कोड नो पाली सातमी