________________
(१७८) ॥ रत्नसार ॥ छै. सर्व थी थोड़ा देवता शुक्ल लेश्या, तेथी पद्म लेश्या असंख्यात गुणा अधिका, तेथी कृष्ण लेश्या असंख्याता अधिका, तेथी नील लेश्या ना असंख्याता गुणा अधिका, तेथी कपोतं लेश्या ना असंख्यात गुणा, सर्व थी अधिका तेजो लेश्या ना ज्योतिषी देवता असंख्याता माटे. ए विशेष जाणवो. इति.
२३८. मोप्रश्नः-तथा सोपक्रमी आउखावालो जीव श्रायु पूरूं भोगवी मृत्यु पाम्यो, तेहनें अकाले चेवजीवियाओ विवरोविया थयो ते किम् ? यथा दृष्टान्ते कोईक चोरने राजाई हण्यों तिवारे ते जीवें सर्व आयु कर्म ना दल हता ते अात्म प्रदेशे भोगवी आयु कर्म बांध्यो हतुं, एतले पूरो भोगवी चाल्यो. तथा काल आसरी अकाले मूओ जे माटे सुखे समाधे विपाक वेदना वेदी ने जीव चालतो ते थोड़ा काल मध्ये प्रदेश वेदन वेदी ने चाल्यो ते माटे अकाले मुत्रो कहिये एटले प्रदेश वेदन प्रासरी आयु कर्म बंध्यु हतुं ते संपूर्ण भोगव्यु. अने विपाक वेदना आसरी थोड़ा