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(१८४) ॥ रत्नसार ॥ तदप गमानं तरं चोत्पादात् छम नि तिष्टति नि छम स्थ।
__२४७ हिवै मुनि ने छठा गुण ठाणा थी सातमा ने पहिले समये केतली विसूधता होइ ते बैसो संतालीस मों प्रश्नः-आत्माना असंख्याता अध्यवसाय ना थानक कह्यां ते किहां ? ते कषाये किधा लोकाकास ना प्रदेश प्रमाणे एक आत्मा ना असंख्याता प्रदेश छै तेमाटे अप्रमत्त मुनि ने छठा गुणठाणा थी चढतो सातमाने प्रथम समये जेतली विशुद्धता छै तेथी बीजै समये अनन्त गुणी विशुद्धता छै ते किंम ? जे आत्मा ने अप्रमत्तता नी निर्मलताइ करीने कर्म नी वर्गणा अनंती ओछी करै छै तेतली आत्म ज्ञाननिर्मलता थाइ तेणी अपेक्षाई अनन्तगुणी विशुद्धता छै. इम समय समय कहिये. इति भावार्थ.
२४८ हिवै आहारक आहारकमिश्र जीव किम करे. इती बेसौ अडतालीसमो प्रश्नः- जीवारें पुर्व