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॥ रत्नसार ॥ (१८५) धरे संदेह पूछवा निमित्तै आहारक शरीर मोकल्यु होई तिहा(ते ठिकाणे)ज्ञानवंत नहीं(होय)तिवारे तिहां थीवली बीजु आहारक करै ते करती वेलाइ पुर्व श्राहारक संघाते मिश्र हौइ ते माटे. इत्यर्थ
२४९.तथा सिद्ध ने अफुसमाण गति कही ते किम होय ते बेसौगुणपचासमो प्रश्नः? ऐक समे सूक्षम काल माटै किम मिलै?तत्रोत्तरं समश्रेणि एक समय माहि सम श्रेणी ना सर्व आकास प्रदेस फरसतो जीव सिद्धगंति जाइं पण विषम श्रेणीना आकाश प्रदेश न फरसै ते माटे अफुसमाण गति ते श्रीउत्तरा ध्ययन ना ३६ में अध्ययन नी टीका मध्ये का छै. तथा वली बीजो भेद सम श्रेणी आकाश प्रदेश फरसतो फरसतो जाइ ते माटै क्षेत्र श्रासरी ने सिद्ध ने फुसमाण गति. जे माटे एक समय थी बीजा समयांतरे न फरसै ते मांटै कर्म ग्रंथ नी चवदै हजारी टीका मध्ये ए रीते काल प्रासरी सिद्ध ने अफु. समाण गति कहि छै. इत्यर्थः.
२५०.संसारी जीव केवल कार्मण योगै वर्ततो सर्व