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|| रत्नसार ॥
( १६३)
ने श्रासरे मोटो विमान छै. ते सम्पूर्ण ते बडो मानवी नी दृष्टे नथी श्रावतु, पण तेह ना विमान ना तलिया नो तेज नो आभास मान झलक कांति दीसै छै पण संपूर्ण विमान जेवडो छै तेहवो दृष्टे न आवे, ते माटै आत्मांगुल प्रमाण नौ लाख योयन विषय कहिये. इम शब्द नो विषय पिणरूडो गाज्ये, तेहने श्रोतेंद्री नो भलो क्षयोपशम होय ते सांभले, इम नव योजन आव्या वायु नें योगै खाटा खारा पुद्गल नु जिव्हा ईद्री यें ग्रहण थाई. इम नासिकाये वायू योगे आव्या नव जोयण सुरभी दुरभी जे ग्रहण थाई. इम स्पर्श ईन्द्रीये नव जोजन ना वायू योगे श्राग्रहण थाइ पण ते सर्व जोयण श्रात्मांगुल प्रमाण गाऊ ४ जाणवा. तत्र गाथा - ( पुढं सुणेइ सदं रूठ पुण पास । श्रपुधंतु गंध रसंच वधं फासं पुठं वियागरेति ॥ ) तथा चक्षु इंद्री नो आकार मसूरनी दाल जेवडो वडो, श्रोतेंद्री नो आकार आगछीया वृक्ष ना फूल जेहवो, तथा नासिका नो आकार तिलनां
फूल