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|| रत्नसार ॥
सारीखो, तथा रसेंद्री नो श्राकार छरपलो तथा कमल ना पत सरीखो, फरसेंद्री नो आकार अनेक प्रकारे है. इम साधु ने पंचेंद्रीयते श्राकार रूपै छै. पण विकार रूप नथी. ते माटे पंचेंद्री ना विषय विकार दमै ते मुनीनें पण वीतराग रूप कहिये. इति.
२२१. पुनरपि पंचेंद्री ना द्रव्य भाव रूपै कहिये छै. श्रोद्री बेहु प्रकारे द्रव्य अभाव. तिहां द्रव्य इंद्री बेहु प्रकारे — सूक्ष्म नैं बादर. बादर ते बाहिरै दीसै, सूक्ष्म ते कर्ण मांहि विषय ग्रहण व्यापारें, जघन्य थी
गुलो संख्यातमो भाग, उत्कृष्ठ १२ जोयण नो विषय. इम सर्व इंद्री नें विषय जघन्य थी अंगुल नौ असंख्यातमो उत्कृष्टो विषय जिम पुर्वे कह्यं वै तिम जाणवो.
२२२. हिवै भावेंद्री ते जीवने दर्शनावरणी कर्म क्षयोपसमै शब्द रूप रस गन्ध स्पर्शे लेवानी शक्ति उपजै ते उपयोगे भावेंद्र कहिये. अने श्राकारे द्रव्य इंद्री