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(१६८)
देवता पण न उपजै . इत्यर्थ.
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२२७. हिवै पांच लब्धि नो भावार्थ लिखिये छै. प्रथम काल लब्धि १ इंद्री लब्धि २ उपदेश लब्धि ३ उपशम लब्धि ४ प्रयोगता लब्धि ५ ए पांच लब्धि पामै तिवारे जीव आत्मबोध समकित धर्म पामै ते मंध्ये ३ तीन लब्धि पहली पाम्या पछी छेहली एकठी एक समै प्रगटै. ते मध्ये काल लब्धि ते यथाप्रवृत्ति करण थये आवै. सात कर्म नी थिति सात कोडा कोडि सागर नी थितै श्राणै,एतले ज्ञानावर्णी कर्म नी थिति ३० कोडा कोडी उत्कृष्टे हती ते अकाम निर्जराई औछी करै तो २९ कोडाकोडी घटाडी नवि अणबंध तो एक कोडा कोडि मांहि आणी मूकै. इम७ सात कर्म नी जेहनी जे स्थिति उत्कृष्टी वै ते मांहि थी सर्व घटावै तो एक
॥ रत्नसार ॥
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ज्ञाना वर्णि १ दर्शना वर्णि २ वेदनि ३ अन्तराय ४ ये च्यार कर्म नी उतकृष्टिस्थिती ३० त्रीश कोड़ाकोड़ी नी, अने नाम कर्म १ गौत्र कर्म २ ये बे कर्म नी उतकृष्टिस्थिती २० वीस कोड़ाकोड़ो नी छै, अने मोहनी कर्म नी उतकृष्टस्थिती ७० सितर कोड़ाकोड़ी नी छै, ते ७ सात कर्म नी उतकृष्टस्थिती मांहे थी सर्व खपावै, बाकी एके एक कोड़ा कोड़ी नी राजे.