________________
(१७२ )
॥ रत्नसार ॥ काल इम ए सूक्ष्म श्रद्वा पल्योपमे करीने देवता नारकी तिर्यच, मनुष्य आयु मान, कर्म स्थितीमान, काय स्थिती मान, काल मानादिक लेवो ४. तथा ते बालाग्र खंड भरा पल्य मांहि थी कल्प वालाग्रे स्पर्श जे श्राकाश प्रदेश ते मांहि थी एकैके आकाश प्रदेश समय २ काढतां जिवारे सर्व वालाग्र स्पर्श प्रदेश निर्लेप होइ तिवारे बादर क्षेत्र पल्य थाइ ५. अने जिवारे ते पल्य ना आकाश प्रदेश कल्पा सर्व स्पर्शी था समैर एकेक काढतां जिवारे निर्लेप थाइ तिवारे सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम थाइ ६. एणे करि दृष्टिवाद मध्ये एकेंद्री अथवा सादिक जीव नो प्रमाण कीजीए श्रसंख्याता उत्सर्पणी प्रमाणें. इम तीन २ सूक्ष्म पल्योपम शास्त्र ने विषे उपयोगी होय. ३ तीन वादर कह्या ते सूक्ष्म नो सुक्ष्माव बोधार्थ. इहां प्राई घणो श्रद्वापल्यौपम प्रयोजन छै. इम कोडाकोडी सागरोपमे एक काल चक्र तेणें अनंते काल चक्रे पुद्गल परावर्त्त होइ, ते आठ प्रकार नो छै तिहां थी जो अस्य गाथा - ( उद्वार अधारि