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(१७.) ॥ रत्नसार ॥ पछी अनिवृत्तिकरण अंतर करणे वर्त्ततो जीव प्रयोगता लब्धि पामै. तिहां वीतराग धर्म रुचि प्रतीतात्मक धर्म शुद्ध श्रद्धाने आत्म स्वरूपनो दर्शण, ज्ञान, स्वरूपाचरण रूपैं समकित पामै. इम संमी लब्धि सम्यक् दर्शन पामै. इति नियमसार ग्रन्थे का छै तिहां थी ए लब्धि ना भेद किंचित लिख्या है. इति.
२२८.हिवै उद्दार पल्योपम,अने एक श्रद्दा पल्योपम, एक क्षेत्र पल्योपम एतीन नो स्वरूप लिख्यते. ए तीन ना सुक्ष्म अने बादर ए बे भेद करता छः भेद थया. तेह नां मान अनंता सूक्ष्म परमाणु आनो एक व्यवहारिक परमाणु तेणे अाठै त्रसरेणु,८ ऊर्धरेणु, ८ रथरेणु, ८ उत्तर कुरू युमलीया ना वालाग्रे. ८ महा हिमवन्त क्षेत्र युगलिया, ८ हिमवंत क्षेत्र युगलीया, . ८ महा विदेह नर वालाग्र, ८ भरत नर वालाग्र,८. लीख ८, जूय ८, जबमध्य ८, अंगुले. इम प्रत्ये आठ गुणा करे तिवारे उच्छेद अांगुल. तेणें चौबीस आंगुले हाथ. चऊ हाथे धनुष. तथा बे हजार