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॥ रत्नसार ॥ (१६९) कोडा कोडी रहै. इम आयु वर्जिने सात कर्म नी स्थिति सात कोडा कोडी सागर मांहे आणै त्यारै, काल लन्धि जीव पाम्यो, पण इंद्री लब्धि जे पंचेंद्री पणा संज्ञी पणौ न पाम्यो. काल लब्धी थि एकेंद्री विगलेंद्री पणे पाम्यो ते काम न आवै. इम भव नी परम्पराइ किवारै अकाम निर्जराइं ऊंचो आवै, पंचेंद्री संज्ञी पणों पामै. तिवारे इंद्री लब्धि पाम्यो, पण काल लब्धि न पाम्यो. इम भवनी परम्पराइ कोई जीव ने काल लब्धि न पामै. ते जिवारे जीव ने भव थिति घटे, साते कर्मनी थिति एक कोडा कोडी मांहे आंणै एहवा उत्कृष्टै यथाप्रवर्त्त करण चरमावर्त्तन आवै जो जीव पाछो नहीं पडै, संसार वधार से नही, एहवा जीव ने काल लब्धि पाम्यो इंद्री लब्धि पामी ने उपदेश लब्धि पामै तीजी त्यारे गंठी भेद करै. ते समै तिहा उपशमता लब्धि पामै तिवारे, उपशम भावै वर्त्ततो अपूर्व करण बीजो पामै. तिवारे दुर्भेद जे गंठी तेह ने भेदै तिहां चौथी लब्धि पाम्यो. तिवार