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(१६२) ॥ रत्नसार ॥ संख्या २५२ भेद जाणवा. इम श्रोत्रंद्रीना१२ विकार, चक्षु इंद्रीना६०, नासिकाना१२, जिव्हा ना७२, स्पर्श इंद्रीना ९६, इम सर्व मिली २५२. एतले पांचेंद्रीना विषय २३, अने विकार ते २५२ भेदे जाणवा. इति विषय विकार संपूर्ण.
२२०. शब्दादि इंद्री नो विषय कहै छै. भाष्यकताह-(बार सहितो सुतस्सेसाणं नव ही जोइणे हिंतो। गिणत्तो पत्तमथं ए तो परतो नगिणंति ॥१॥) चक्ष नो एक लाख योजन विषय कह्यो छै. तथ कानना बार जोयण इत्यादिक का छै. जोयण श्रात्मांगुल प्रमाणे च्यार गाऊ नो जाणवो. तथा सूर्य नो बिब तो आत्मांगुल प्रमाणे घणा लाख योयण थाई. ते माटे एतलो चक्षु नो विषय नथी तो सूर्य नो बिंब किम देखै छै ? तत्रोत्तरं-सूर्य नो विमान तो देवकाय एक योजण ना एक सढी या अडतालिस भागनो छै. तेहना आपणा गाऊ १३०० तेरासो