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॥ रत्नसार ॥ (१५१) इम पन्नवणा मध्ये तथा कायस्थि स्तोत्र नी टीका मध्ये कयूं छै. इति पूर्ण. - २०१. तथा दर्शन नी क्षपक श्रेणी ते चौथा थी मांडी, चारित्र नी क्षपक श्रेणी आठमी थी मांडै.
२०२.कर्म ना बंध जघन्य थी एक समै नो, जघन्य स्थिति तें अंत मुहूर्त तांइ भोगवै. उत्कृष्टै ज्ञानावरणी कर्म नी त्रीस कोडा कोंडी. इम ए रीते.
२०३. तथा भव्य अभव्य सर्व जीव सूक्ष्म निगोद थी निकल्या छै, मूल भूमिका ते जाणवी.
२०४. तथा मनोयोग तो जघन्य थी एक समय नो उत्कृष्टो अंतरमुहूर्त नो काल.इम वचन योग नो पण काल ए रीते छै इम धारयूं छं. इति.
२०५.षट् गुणी हानि वृद्धि द्रव्यने छै तेहनो स्वरूप यथा श्रुत लिखिये छै. द्रव्य नूं लक्षण इयुं ? ते द्रवाइ ते सेणे ? गुण पर्याय करी द्रवाइ तेद्रव्य कहिये. तथा द्रव्य ते उत्पादादि, व्यय, ध्रुव तांइ सहित छ. ते द्रव्य