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॥ रत्नसार ॥ (१५९) पृथिवी काय गोत्र, पीत वर्ण, पुढविना जीव, इंद्र देवता १. बंभी थावरकाय नो अपकाय गोत्र, रक्त लाल वर्ण, ब्रह्म देवता, अपकाय ना जीव २. सीपी थावरकाए नाम, तेहनो गोत्र तेऊ काय, श्वेत वर्ण, सिल्प देवता, तेऊकायना जीव ३. समईया थावरकायए नाम, तेह नो गोत्र वायु काय, हरित वर्ण, समुद्र देवता, वायुकायना जीव४. आवस्स थावरकाए नाम, वनस्पतिकाय गोत्र,नाना वर्ण, पाताल दैवता, वनस्पतिनाजीव५. तथा जंगम ते त्रस काय कहिये. ए छः काय ना नाम गोत्र जाणवा. जेम सात नर्क ना नाम गोत्र छै तेम ए पण जाणवा. ए भाव.
२१८हिवै दस प्रकारे सत्य का छै तेह नी गाथाजणवय समय ठवणा नाम रुवे पडुच्च सच्चेय व्यवहार भाव योगे दसमेउ वम सच्चेय ॥१॥) ए गाथा ठाणांगे छै.
२१९ हिवै पंचेंद्री ना २५२ दोसो बावन भेदे जीव ने कर्म बन्ध होइ एतला विकारहोइ ते लिखिये