________________
(१५८) ॥ रत्नसार ।। कहिये. तेहना फल परभवे राज्यादिक सुख पामी ने पापा-बंधी पुन्ये संसार घणो बधारै, कुगति दल मेलवै२. तथा पात्र ते सम्यक् दृष्टी देशविरति साधर्मी ने पोषवो ते पात्र दान, तेहथी पुन्यानुबन्धी पुन्याइ उपार्जि ने भव तुच्छ करै, संसार घटाडी ने वहिलो सिद्धि वरे ३. तथा सुपात्र दान साधु चारित्रीया तथा गणधर तीर्थकर ने अन्नादिक ना दान दे तो महा पुन्या नुं बन्धी पुन्याई उपार्जि ने थोडा भव माहि सिद्धि वरें, सुबाहु ऋषि तथा धना शालभद्रादिक नी परें वहिला सिद्धि वरें. ४ ए पात्र कुपात्र अपात्र सुपात्र दान ना भेद जाणवा. ए भाव.
-- २१७ तथा छः कायना नाम गोत्र जाणवा रूप लिखिये छे. इंदीथावरकाए १ बंभी थावरकाएर सीपी थावरकाए३ समुई थावरकाए ४ावसी थावरकाए ५ जंगम थावरकाए६. तथा गाथा- (इंदी बंभी सीपी समुई आवस्सी पांच काए । जर रत्त सेय हरिया बहु वन्ना हुंती पंचमीया ॥१॥) तत्र इंदीथावर काय- ४